Life of Gautam Buddha (सिद्धार्थ गौतम बुद्ध)
महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेश अनुभव के आग में तप कर सामने आए हैं। इसीलिए गौतम बुद्ध के उपदेश किसी खज़ाने से कम नहीं। गौतम बुद्ध विचार आज भी बेहद प्रासंगिक हैं। वे हमें इस संसार में राह दिखाते हैं।
अगर हम महात्मा बुद्ध के उपदेश, बुद्ध के विचार, को पढ़कर उन्हें अपने जीवन में अपनाएं तो अपना जीवन सफल बना सकते हैं।
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बुद्ध ने ज्ञान के सार को कुल 55 बिंदुओं में समेट दिया।
चार - आर्य सत्य
पाँच - पंचशील
आठ - अष्टांगिक मार्ग और
अड़तीस - महामंगलसुत
बुद्ध के चार आर्य सत्य
1. दुनियाँ में दु:ख है।
2. दु:ख का कारण है।
3. दु:ख का निवारण है। और
4. दु:ख के निवारण का उपाय है।
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पंचशील
1. झूठ न बोलना
2. अहिंसा
3. चोरी नहीं करना
4. व्यभिचार नहीं करना और
5. नशापान/मद्यपान नहीं करना
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अष्टांगिक मार्ग
1. सम्यक दृष्टि (दृष्टिकोण) /Right view
चार आर्य सत्य तथा संसार चक्र के कारणों का ज्ञान।
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2. सम्यक संकल्प / Right intention
सांसारिक विषयों, राग, द्वेष के परित्याग का संकल्प
2. सम्यक संकल्प / Right intention
सांसारिक विषयों, राग, द्वेष के परित्याग का संकल्प
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3. सम्यक वचन /वाणी / Right speech
मिथ्या और अनुचित बातों का त्याग
3. सम्यक वचन /वाणी / Right speech
मिथ्या और अनुचित बातों का त्याग
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4. सम्यक कर्मां/ Right action
हिंसा व गलत कर्मों से परहेज
4. सम्यक कर्मां/ Right action
हिंसा व गलत कर्मों से परहेज
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5. सम्यक आजीविका/ Right livelihood (profession)
गलत व्यापार व रोजगार से परहेज
5. सम्यक आजीविका/ Right livelihood (profession)
गलत व्यापार व रोजगार से परहेज
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6. सम्यक व्यायाम / Right exersie (physical activity)
अर्थात बुरे कर्मों को त्याग कर शुभ कर्म के लिए संकल्प
6. सम्यक व्यायाम / Right exersie (physical activity)
अर्थात बुरे कर्मों को त्याग कर शुभ कर्म के लिए संकल्प
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7. सम्यक स्मृति / Right mindfulness
चित शुद्धि का संकल्प
7. सम्यक स्मृति / Right mindfulness
चित शुद्धि का संकल्प
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8. सम्यक समाधि / Right meditation (Vpasana Meditation)
चित के एकाग्रता एवं निर्वाण की प्राप्ति
8. सम्यक समाधि / Right meditation (Vpasana Meditation)
चित के एकाग्रता एवं निर्वाण की प्राप्ति
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तथागत बुद्ध ने 38 प्रकार के मंगल कर्म बताये है जो महामंगलसुत के नाम से भी जाना जाता है, निम्न प्रकार है:--
1. सत्य वचन बोलना।
2. बुद्धिमानों की संगति करना।
3. शीलवानो की संगति करना।
4. अनुकूल स्थानों में निवास करना।
5. कुशल कर्मों का संचय करना।
6. कुशल कर्मों में लग जाना।
7. अधिकतम ज्ञान का संचय करना।
8. तकनीकी विद्या अर्थात शिल्प सीखना।
9. व्यवहार कुशल एवं विनम्र होना।
10. विवेकवान होना।
11. सुंदर वक्ता होना।
12. माता पिता की सेवा करना।
13. पुत्र-पुत्री-स्त्री का पालन पोषण करना।
14. अकुशल कर्मों को ना करना।
15. बिना किसी अपेक्षाके दान देना।
16. धम्म का आचरण करना।
17. सगे सम्बंधियों का आदर सत्कार करना।
18. कल्याणकारी कार्य करना।
19. मन, शरीर तथा वचन से परपीड़क कार्य ना करना।
20. नशीली पदार्थों का सेवन ना करना।
21. धम्म के कार्यों में तत्पर रहना।
22. गौरवशाली व्यक्तित्व बनाए रखना।
23. विनम्रता बनाए रखना।
24. पूर्ण रूप से संतुष्ट होना अर्थात तृप्त होना।
25. कृतज्ञता कायम रखना।
26. समय समय पर धम्म चर्चा करना ।
27. क्षमाशील होना।
28. आज्ञाकारी होना।
29. भिक्षुओ, शीलवान लोगों का दर्शन करना।
30. मन को एकाग्र करना।
31. मन को निर्मल करना।
32. सतत जागरूकता बनाए रखना ।
33. पाँच शीलों का पालन करना।
34. चार आर्य सत्यों का दर्शन करना ।
35. आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना।
36. निर्वाण का साक्षात्कार करना।
37. लोक धम्म लाभ हानि, यश अपयश, सुख-दुख,जय-पराजय से विचलित ना होना।
38. शोक रहित, निर्मल एवं निर्भय होना।
अगर कोई अपने दैनिक जीवन में इन 38 मंगल कर्मों का पालन करने लग जाये, तो उसके जीवन से सारे दुःख एवं परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जायेंगी।।।
अध्यात्म के क्षेत्र में गहरा उतरने वालों को त्रिपिटक का अध्ययन करना चाहिए
किंतु, गृहस्थ जीवन सफल और सम्मानित तरीके से जीने और निर्वाण प्राप्त करने के लिए यहाँ दी गई 55 बातें हीं काफी (सफिसियेंट) है।
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तथागत बुद्ध ने 38 प्रकार के मंगल कर्म बताये है जो महामंगलसुत के नाम से भी जाना जाता है, निम्न प्रकार है:--
1. सत्य वचन बोलना।
2. बुद्धिमानों की संगति करना।
3. शीलवानो की संगति करना।
4. अनुकूल स्थानों में निवास करना।
5. कुशल कर्मों का संचय करना।
6. कुशल कर्मों में लग जाना।
7. अधिकतम ज्ञान का संचय करना।
8. तकनीकी विद्या अर्थात शिल्प सीखना।
9. व्यवहार कुशल एवं विनम्र होना।
10. विवेकवान होना।
11. सुंदर वक्ता होना।
12. माता पिता की सेवा करना।
13. पुत्र-पुत्री-स्त्री का पालन पोषण करना।
14. अकुशल कर्मों को ना करना।
15. बिना किसी अपेक्षाके दान देना।
16. धम्म का आचरण करना।
17. सगे सम्बंधियों का आदर सत्कार करना।
18. कल्याणकारी कार्य करना।
19. मन, शरीर तथा वचन से परपीड़क कार्य ना करना।
20. नशीली पदार्थों का सेवन ना करना।
21. धम्म के कार्यों में तत्पर रहना।
22. गौरवशाली व्यक्तित्व बनाए रखना।
23. विनम्रता बनाए रखना।
24. पूर्ण रूप से संतुष्ट होना अर्थात तृप्त होना।
25. कृतज्ञता कायम रखना।
26. समय समय पर धम्म चर्चा करना ।
27. क्षमाशील होना।
28. आज्ञाकारी होना।
29. भिक्षुओ, शीलवान लोगों का दर्शन करना।
30. मन को एकाग्र करना।
31. मन को निर्मल करना।
32. सतत जागरूकता बनाए रखना ।
33. पाँच शीलों का पालन करना।
34. चार आर्य सत्यों का दर्शन करना ।
35. आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना।
36. निर्वाण का साक्षात्कार करना।
37. लोक धम्म लाभ हानि, यश अपयश, सुख-दुख,जय-पराजय से विचलित ना होना।
38. शोक रहित, निर्मल एवं निर्भय होना।
अगर कोई अपने दैनिक जीवन में इन 38 मंगल कर्मों का पालन करने लग जाये, तो उसके जीवन से सारे दुःख एवं परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जायेंगी।।।
अध्यात्म के क्षेत्र में गहरा उतरने वालों को त्रिपिटक का अध्ययन करना चाहिए
किंतु, गृहस्थ जीवन सफल और सम्मानित तरीके से जीने और निर्वाण प्राप्त करने के लिए यहाँ दी गई 55 बातें हीं काफी (सफिसियेंट) है।
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तो आईये। बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर जीवन यापन करें और धार्मिक आडंबरों और पाखंड से दूर रहें।
🙏भवतु सब्ब मंगलं🙏
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
लेकिन “गौतम” गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था। गौतम बुद्ध के जन्म के मात्र सात दिन बाद ही उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था।
उनका पालन पोषण उनकी मौसी और राजा शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (जिन्हें गौतमी के नाम से भी जाना जाता है) ने किया था।उनके गुरु का नाम विश्वामित्र था जिनसे उन्होंने वेद और उपनिषद् की शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान जैसी कला का भी भरपूर प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
विवाह और सन्यास – Marriage and Retirement
गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में कोली वंश की कन्या यशोधरा से हुआ था।
तो आईये। बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर जीवन यापन करें और धार्मिक आडंबरों और पाखंड से दूर रहें।
बुद्धं शरणम गच्छामि!
धम्मं शरणम गच्छामि!
संघम् शरणम गच्छामि!
🙏भवतु सब्ब मंगलं🙏
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गौतम बुद्ध का जीवन – Life of Gautam Buddha
बौद्ध धर्म के संस्थापक और पूरी दुनिया को सत्य अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नामक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन और माता का नाम मायादेवी था। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।लेकिन “गौतम” गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था। गौतम बुद्ध के जन्म के मात्र सात दिन बाद ही उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था।
उनका पालन पोषण उनकी मौसी और राजा शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (जिन्हें गौतमी के नाम से भी जाना जाता है) ने किया था।उनके गुरु का नाम विश्वामित्र था जिनसे उन्होंने वेद और उपनिषद् की शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान जैसी कला का भी भरपूर प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
विवाह और सन्यास – Marriage and Retirement
गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में कोली वंश की कन्या यशोधरा से हुआ था।
सिद्धार्थ अपनी पत्नी से ढेर सारी ज्ञान की बातें किया करते थे, उनका कहना था कि पूरे संसार में केवल स्त्री ही पुरुष के आत्मा को बांध सकती है। इसी बीच यशोधरा ने पुत्र राहुल को भी जन्म दिया।
उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था। परन्तु, ये सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोह-माया में बांध नहीं सकी।
एक बार वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले थे। जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तब उनकी आँखों के सामने एक रोगी आ गया। जिसकी साँसे तेजी से चल रही थी।
कंधे ढीले पड़ गए थे। तीसरी बार जब सिद्धार्थ को सैर करने के लिए निकले तब उन्हें एक अर्थी दिखाई दी। जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे। इन सभी दृश्यों को देख कर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए और उन्होंने सन्यास ग्रहण करने का फैसला ले लिया।
इसके बाद सिद्धार्थ राज्य का मोह छोड़कर तपस्या करने के लिए महल से बाहर निकल गए। उन्होंने जगह जगह घूम घूम कर भिक्षा माँगना शुरू कर दिया। वो ज्ञान की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे।
शुरुआत में, गौतम बुद्ध सिर्फ तिल-चावल खाकर तपस्या करते थे। लेकिन बाद में उन्होंने भोजन त्याग दिया और सिर्फ़ तपस्या में ही अपने शरीर को समर्पित कर दिया। छः साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। बाद में सिद्धार्थ को लगा कि तप करने के लिए आहार-विहार जरूरी है, इसलिए उन्होंने अन्न ग्रहण करने के साथ ही तपस्या करने का निर्णय लिया।
ज्ञान की प्राप्ति – Attainment of Knowledge
बैसाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे। जिस गांव में सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे उसी गाँव की एक स्त्री सुजाता ने पुत्र प्राप्ति के लिए वट वृक्ष से मन्नत माँगी थी। उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और मन्नत पूरी होने पर वह स्त्री सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर वटवृक्ष के पास जा पहुँची।
जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- “जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो।” इतना कहकर सुजाता वहां से चली गई।
इसके बाद उसी रात, यानी कि 528 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात 35 वर्षीय सिद्धार्थ को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ नाम से लोग जानने लगे। जिस वट वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसे आगे चलकर बोधिवृक्ष के नाम से जाना गया। और वो स्थान बोधगया के नाम से लोकप्रिय हुआ।
पंचतत्व में विलीन --- महापरिनिर्वाण – Merges in Quintessence
महात्मा बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में अपने नश्वर शरीर का त्याग करते हुए खुद को सदा के लिए परमात्मा के शरण में कर दिया।
...........
महात्मा बुद्ध के उपदेश:- Gautam Buddha Updesh
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। वहां 5 मित्रों को अपना अनुयाई बनाया तथा उन्हें भी धर्म के प्रचार के लिए भेज दिया। महात्मा बुद्ध ने सभी दुखों के कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बताया, तथा तृष्णा (इच्छा या आकांक्षा) को सभी दुखों का कारण बताया। महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का समर्थन किया, पशु हत्या का विरोध भी किया।
◆ महात्मा बुद्ध ने अग्निहोत्र तथा गायत्री मन्त्र का प्रचार किया।
◆ ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि
◆ मध्यमार्ग का अनुसरण
◆ चार आर्य सत्य
◆ अष्टांग मार्ग
ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। अहिंसा और सत्य का संदेश फैलाने वाले गौतम बुद्ध को भगवान का दर्जा दिया जाता है। उन्होंने बौद्ध धर्म की भी स्थापना की।
इस वक़्त दुनिया भर की तकरीबन 7 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है और ये लोग महात्मा बुद्ध के बताए गए रास्ते पर चलकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
“हर सुबह हम पुनः जन्म लेते हैं, हम आज क्या करते हैं यही सबसे अधिक मायने रखता है।”
“जूनून जैसी कोई आग नहीं है, नफरत जैसा कोई दरिंदा नहीं है, मूर्खता जैसी कोई जाल नहीं है, लालच जैसी कोई धार नहीं है।”
“शांति अन्दर से आती है. इसे बाहर मत खोजो।” – गौतम बुद्ध
“आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ या बोल लें, लेकिन जब तक उनपर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है।”
“जीवन में एक दिन भी समझदारी से जीना कहीं अच्छा है, बजाय एक हजार साल तक बिना ध्यान के साधना करने के।” – गौतम बुद्ध
“एक पल एक दिन को बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता है, और एक जीवन इस दुनिया को बदल सकता है।” – Gautam Buddha Updesh
“जो व्यक्ति अपना जीवन को समझदारी से जीता है उसे मृत्यु से भी डर नहीं लगता।” – गौतम बुद्ध
“क्रोध को प्यार से, बुराई को अच्छाई से, स्वार्थी को उदारता से और झूठे व्यक्ति को सच्चाई से जीता जा सकता है।” – Gautam Buddha
“एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है। इसी तरह सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा होता है।” – गौतम बुद्ध
“एक मूर्ख व्यक्ति एक समझदार व्यक्ति के साथ रहकर भी अपने पूरे जीवन में सच को उसी तरह से नहीं देख पाता, जिस तरह से एक चम्मच, सूप के स्वाद का आनंद नहीं ले पाता है।” – गौतम बुद्ध
“आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।” – Gautam Buddha
“वह व्यक्ति जो 50 लोगों से प्यार करता है उसके पास खुश होने के लिए 50 कारण होते हैं। जो किसी से प्यार नहीं करता उसके पास खुश रहने का कोई कारण नहीं होता।” – गौतम बुद्ध
“जिस काम को करने में वर्तमान में तो दर्द हो लेकिन भविष्य में खुशी, उसे करने के लिए काफी अभ्यास की जरूरत होती है।” – Gautam Buddha
“मैं कभी नहीं देखता क्या किया गया है, मैं केवल ये देखता हूं कि क्या करना बाकी है।” – गौतम बुद्ध
“जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्या त्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।” – Gautam Buddha Updesh
“अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे।” – गौतम बुद्ध
“तुम्हारा रास्ता आकाश में नहीं है। रास्ता दिल में है।” – Gautam Buddha
उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था। परन्तु, ये सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोह-माया में बांध नहीं सकी।
एक बार वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले थे। जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तब उनकी आँखों के सामने एक रोगी आ गया। जिसकी साँसे तेजी से चल रही थी।
कंधे ढीले पड़ गए थे। तीसरी बार जब सिद्धार्थ को सैर करने के लिए निकले तब उन्हें एक अर्थी दिखाई दी। जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे। इन सभी दृश्यों को देख कर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए और उन्होंने सन्यास ग्रहण करने का फैसला ले लिया।
इसके बाद सिद्धार्थ राज्य का मोह छोड़कर तपस्या करने के लिए महल से बाहर निकल गए। उन्होंने जगह जगह घूम घूम कर भिक्षा माँगना शुरू कर दिया। वो ज्ञान की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे।
शुरुआत में, गौतम बुद्ध सिर्फ तिल-चावल खाकर तपस्या करते थे। लेकिन बाद में उन्होंने भोजन त्याग दिया और सिर्फ़ तपस्या में ही अपने शरीर को समर्पित कर दिया। छः साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। बाद में सिद्धार्थ को लगा कि तप करने के लिए आहार-विहार जरूरी है, इसलिए उन्होंने अन्न ग्रहण करने के साथ ही तपस्या करने का निर्णय लिया।
ज्ञान की प्राप्ति – Attainment of Knowledge
बैसाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे। जिस गांव में सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे उसी गाँव की एक स्त्री सुजाता ने पुत्र प्राप्ति के लिए वट वृक्ष से मन्नत माँगी थी। उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और मन्नत पूरी होने पर वह स्त्री सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर वटवृक्ष के पास जा पहुँची।
जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- “जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो।” इतना कहकर सुजाता वहां से चली गई।
इसके बाद उसी रात, यानी कि 528 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात 35 वर्षीय सिद्धार्थ को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ नाम से लोग जानने लगे। जिस वट वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसे आगे चलकर बोधिवृक्ष के नाम से जाना गया। और वो स्थान बोधगया के नाम से लोकप्रिय हुआ।
पंचतत्व में विलीन --- महापरिनिर्वाण – Merges in Quintessence
महात्मा बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में अपने नश्वर शरीर का त्याग करते हुए खुद को सदा के लिए परमात्मा के शरण में कर दिया।
...........
महात्मा बुद्ध के उपदेश:- Gautam Buddha Updesh
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। वहां 5 मित्रों को अपना अनुयाई बनाया तथा उन्हें भी धर्म के प्रचार के लिए भेज दिया। महात्मा बुद्ध ने सभी दुखों के कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बताया, तथा तृष्णा (इच्छा या आकांक्षा) को सभी दुखों का कारण बताया। महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का समर्थन किया, पशु हत्या का विरोध भी किया।
महात्मा बुद्ध के मुख्य उपदेश:-
◆ ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि
◆ मध्यमार्ग का अनुसरण
◆ चार आर्य सत्य
◆ अष्टांग मार्ग
ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। अहिंसा और सत्य का संदेश फैलाने वाले गौतम बुद्ध को भगवान का दर्जा दिया जाता है। उन्होंने बौद्ध धर्म की भी स्थापना की।
इस वक़्त दुनिया भर की तकरीबन 7 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है और ये लोग महात्मा बुद्ध के बताए गए रास्ते पर चलकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
ऐसे में आज के इस पोस्ट Gautam Buddha Updesh के माध्यम से हम आप तक गौतम बुद्ध द्वारा बताई गयी बातों को पहुँचाने वाले हैं।
“हर सुबह हम पुनः जन्म लेते हैं, हम आज क्या करते हैं यही सबसे अधिक मायने रखता है।”
“जूनून जैसी कोई आग नहीं है, नफरत जैसा कोई दरिंदा नहीं है, मूर्खता जैसी कोई जाल नहीं है, लालच जैसी कोई धार नहीं है।”
“शांति अन्दर से आती है. इसे बाहर मत खोजो।” – गौतम बुद्ध
“आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ या बोल लें, लेकिन जब तक उनपर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है।”
“सत्य के रस्ते पर कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है, या तो वह पूरा सफ़र तय नहीं करता या सफ़र की शुरुआत ही नहीं करता।” –गौतम बुद्ध
.“क्रोधित रहना, जलते हुए कोयले को किसी दूसरे व्यक्ति पर फेंकने की इच्छा से पकड़े रहने के समान है यह सबसे पहले आप को ही जलाता है।” – Gautam Buddha
“जीवन में एक दिन भी समझदारी से जीना कहीं अच्छा है, बजाय एक हजार साल तक बिना ध्यान के साधना करने के।” – गौतम बुद्ध
“एक पल एक दिन को बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता है, और एक जीवन इस दुनिया को बदल सकता है।” – Gautam Buddha Updesh
“जो व्यक्ति अपना जीवन को समझदारी से जीता है उसे मृत्यु से भी डर नहीं लगता।” – गौतम बुद्ध
“क्रोध को प्यार से, बुराई को अच्छाई से, स्वार्थी को उदारता से और झूठे व्यक्ति को सच्चाई से जीता जा सकता है।” – Gautam Buddha
“एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है। इसी तरह सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा होता है।” – गौतम बुद्ध
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“अगर थोड़े से आराम को छोड़ने से व्यक्ति एक बड़ी खुशी को देख पाता है, तो एक समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह थोड़े से आराम को छोड़कर बड़ी खुशी को हासिल करे।” – Gautam Buddha Updesh
“एक मूर्ख व्यक्ति एक समझदार व्यक्ति के साथ रहकर भी अपने पूरे जीवन में सच को उसी तरह से नहीं देख पाता, जिस तरह से एक चम्मच, सूप के स्वाद का आनंद नहीं ले पाता है।” – गौतम बुद्ध
“आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।” – Gautam Buddha
“वह व्यक्ति जो 50 लोगों से प्यार करता है उसके पास खुश होने के लिए 50 कारण होते हैं। जो किसी से प्यार नहीं करता उसके पास खुश रहने का कोई कारण नहीं होता।” – गौतम बुद्ध
“जिस काम को करने में वर्तमान में तो दर्द हो लेकिन भविष्य में खुशी, उसे करने के लिए काफी अभ्यास की जरूरत होती है।” – Gautam Buddha
“मैं कभी नहीं देखता क्या किया गया है, मैं केवल ये देखता हूं कि क्या करना बाकी है।” – गौतम बुद्ध
“जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्या त्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।” – Gautam Buddha Updesh
“अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे।” – गौतम बुद्ध
“तुम्हारा रास्ता आकाश में नहीं है। रास्ता दिल में है।” – Gautam Buddha
“हमें हमारे सिवा कोई और नहीं बचाता, न कोई बचा सकता है, और न कोई ऐसा करने का प्रयास करे, हमें खुद ही इस मार्ग पर चलना होगा।” – Gautam Buddha Updesh
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““अगर थोड़े से आराम को छोड़ने से व्यक्ति एक बड़ी खुशी को देख पाता है, तो एक समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह थोड़े से आराम को छोड़कर बड़ी खुशी को हासिल करे।” – Gautam Buddha Updesh
“हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये।”
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“हर अनुभव कुछ न कुछ सिखाता है – हर अनुभव महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम अपनी गलतियों से ही सीखते हैं।”
“हर अनुभव कुछ न कुछ सिखाता है – हर अनुभव महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम अपनी गलतियों से ही सीखते हैं।”
.
“हर इंसान को यह अधिकार है कि वह अपनी दुनिया की खोज स्वंय करे।”
“पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है।”
Final Words:-
गौतम बुद्ध के अनुयायी पूरी दुनिया मे मौजूद है। उनके द्वारा दिए गए उपदेश पर अमल कर के हम सभी अपने जीवन में काफ़ी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। महात्मा बुद्ध ने जीवन को व्यतीत करने के जो मार्ग बताएं हैं उस मार्ग पर दुख और पीड़ा नहीं है। इसलिए हम सभी को उनके द्वारा बताए गए मार्गो पर अमल करना चाहिए।
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“हर इंसान को यह अधिकार है कि वह अपनी दुनिया की खोज स्वंय करे।”
“पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है।”
Final Words:-
गौतम बुद्ध के अनुयायी पूरी दुनिया मे मौजूद है। उनके द्वारा दिए गए उपदेश पर अमल कर के हम सभी अपने जीवन में काफ़ी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। महात्मा बुद्ध ने जीवन को व्यतीत करने के जो मार्ग बताएं हैं उस मार्ग पर दुख और पीड़ा नहीं है। इसलिए हम सभी को उनके द्वारा बताए गए मार्गो पर अमल करना चाहिए।
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