G-358772730 Pravinbambe.com (Web): जैसे विचार, वैसा जीवन / Life as Thought

December 18, 2022

जैसे विचार, वैसा जीवन / Life as Thought

जैसे विचार, वैसा जीवन / Life as Thought

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आप अपने विचारों को बदलकर:
अपनी तकदीर कैसे बदल सकते हैं
अपनी परिस्थितियों को कैसे बेहतर बना सकते हैं
अपनी सेहत कैसे सुधार सकते हैं
अपने लक्ष्य तक कैसे पहुँच सकते हैं
सुख-शांति कैसे पा सकते हैं।

#इंशान अपनी तक़दीर ख़ुद बनाता है

यह छोटी सी पुस्तक बरसों के चिंतन-मनन और अनुभव का परिणाम है। मैंने इसमें वही सिद्धांत बताए हैं, जिन्हें मैंने अपने अनुभव में सच पाया है। इस पुस्तक का विषय सामान्य से हटकर है और इसके बारे में अब तक ज़्यादा कुछ नहीं लिखा गया है।
इसका विषय है: विचार की शक्ति। जी हाँ, इस पुस्तक में यह बताया गया है कि आपके विचारों में शक्ति होती है और आप जितना सोचते हैं, उससे ज़्यादा शक्ति होती है।

° मेरा आपसे एक आग्रह है कि इस पुस्तक को विस्तृत मार्गदर्शिका या संदर्भ-ग्रंथ न मानें। इसके बजाय यह मानें कि ये मेरे सुझाव हैं, ये मेरे बताए गए विचार हैं। फिर आप अपने जीवन के अनुभवों से इस पुस्तक में बताए गए विचारों की सच्चाई की पुष्टि करें।

इस पूरी पुस्तक का मकसद सिर्फ़ इतना है कि लोग यह सच्चाई जान लें -
‘"इंसान अपनी तकदीर ख़ुद बनाता है।’"

            देखिए, जैसा मैं पहले ही बता चुका हूँ, हमारे विचारों में बहुत शक्ति होती है। इनमें इतनी शक्ति होती है कि हम जिन प्रबल विचारों को लंबे समय तक अपने दिमाग़ में रखते हैं, वे अंततः साकार हो जाते हैं और उन्हीं से हमारी तक़दीर बनती है - अगर विचार अच्छे हैं, तो तक़दीर भी अच्छी होगी, और अगर विचार बुरे हैं, तो तक़दीर भी बुरी होगी। इस अटल सत्य को हमेशा-हमेशा के लिए पहचान लें कि जैसे आपके विचार होंगे, वैसी ही आपकी तक़दीर होगी, वैसा ही आपका जीवन होगा।

 ° माना जाता है कि इंसान के दिमाग़ में हर दिन लगभग 60,000 विचार आते हैं। और यही विचार मिलकर हमारी तक़दीर बनाते हैं। बस एक चीज़ का ध्यान रखें, हमारी तक़दीर में सबसे ज़्यादा योगदान उस विचार का होता है, जो हमारे दिमाग़ में मौजूद सबसे प्रबल और स्थायी विचार होता है।

= अपने दिमाग़ की शक्ति को कम न आँकें।= 

 यह इतना ज़्यादा शक्तिशाली है कि इसकी बदौलत मनुष्य ने इतने सारे वैज्ञानिक आविष्कार कर लिए हैं, जो कल्पनातीत लगते हैं। इंसान का दिमाग बहुत चतुर बुनकर होता है। यह चरित्र की भीतरी पोशाक भी बुनता है और परिस्थिति की बाहरी पोशाक भी। अब तक यह अज्ञान के धागे से कष्ट की पोशाक बुन रहा था। आइए, अब हम ज्ञान के धागे से इससे ख़ुशी की पोशाक बुनवाते हैं! विचारों में शक्ति होती है और इस शक्ति का इस्तेमाल अब आप अपने लाभ के लिए कर सकते हैं। इस पुस्तक में बताया गया है कि आप यह काम कैसे कर सकते हैं।

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जैसे विचार, वैसा चरित्र



‘जैसा इंसान अपने दिमाग में सोचता है, वैसा ही वह होता है।’ यह बात मनुष्य के समूचे अस्तित्व पर लागू होती है। यह उसकी जिंदगी की हर स्थिति और हर परिस्थिति पर लागू होती है। इंसान वाकई वैसा ही होता है, जैसा वह सोचता है। उसका चरित्र उसके सभी विचारों का महायोग होता है। उसका जीवन उसके सभी विचारों का महायोग होता है। इसलिए अगर आप अपने जीवन को बदलना चाहते हैं, तो सबसे पहले तो आपको अपने विचारों को बदलना होगा। जब तक आप अपने विचारों को नहीं बदलेंगे, तब तक आपका जीवन नहीं बदल सकता।

इसे ज़्यादा अच्छी तरह समझाने के लिए हम खेती की उपमा लेते हैं। हम जानते हैं कि बीज से पौधा उगता है और बिना बीज के कोई पौधा पैदा नहीं हो सकता। इसी तरह विचार वह मानसिक बीज है, जिसके बिना सक्रियता का पौधा नहीं उग सकता और कर्म का फूल नहीं लग सकता और सुख या दुख का फल नहीं मिल सकता। यह हमेशा सच होता है, चाहे हम सोच-समझकर काम करें या बगैर सोचे-समझे तुरंत प्रतिक्रिया करें।

 °° कर्म विचार का फूल है। देखिए, जब तक बीज नहीं होगा, तब तक फूल नहीं उग सकता, इसलिए विचार पहले आता है, काम उसके बाद होता है। सरल भाषा में समझें, तो आपके मन में कोई विचार आता है और फिर आप उस विचार के अनुरूप काम करते हैं।
^ यानी विचार बीज है और काम उस बीज से उत्पन्न हुआ फूल है। और कर्म के इस फूल से जो फल उत्पन्न होते हैं, वे हैं सुख और दुख। इस तरह हम देख सकते हैं कि मनुष्य अपने दिमाग़ में जिन विचारों के बीज बोता है, वह उन्हीं के अनुरूप मीठी या कड़वी फ़सल काटता है। फ़सल कैसी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कैसे बीज बोए थे। अगर आपने करेले के बीज बोए थे, तो आप आम के फलों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? 

• इस सिद्धांत को अपने जीवन में लागू करके देखें और अगर आप आम के फल खाना चाहते हैं, तो आम के बीज ही बोएँ।
‘हमारे मन के विचार ने हमें बनाया है। हम जो हैं, उसे विचार ने बनाया और ढाला है। यदि किसी इंसान के मन में बुरे विचार होते हैं, तो कष्ट उसके जीवन में उसी तरह खिंचा चला आता है, जिस तरह बैल के पीछे गाड़ी खिंची चली आती है...
... यदि किसी इंसान के विचार पवित्र और निर्मल होते हैं, तो ख़ुशी उसके पास उसी तरह रहती है, जिस तरह उसकी छाया रहती है - हमेशा।’

# विकास मनुष्य का स्वभाव है। वह कोई स्थिर जीव नहीं है। और मनुष्य का विकास नैसर्गिक नियम के अनुरूप होता है। कारण और परिणाम का नियम इस संसार का सबसे महत्वपूर्ण नियम है। यह अटल और अटूट नियम है। कारण और परिणाम का नियम कहता है कि अगर आप किसी बहुमंजिली इमारत से छलाँग लगाते हैं, तो आप ज़मीन पर गिर जाएँगे। छलाँग लगाना कारण था, गिरना परिणाम। कारण और परिणाम का नियम केवल भौतिकी या भौतिक वस्तुओं के संसार में ही लागू नहीं होता। यह विचारों के संसार में भी लागू होता है।

^  जिन लोगों का चरित्र उत्तम और महान रहा है, वह संयोग या क़िस्मत से नहीं रहा है। यह तो इसलिए महान रहा है, क्योंकि उन्होंने सही विचार सोचने की लगातार कोशिश की और नेक विचारों को लंबे समय तक अपने मस्तिष्क में रखा। इसी तरह जिन लोगों का चरित्र घटिया और पाशविक होता है, वह भी संयोग या क़िस्मत से नहीं होता है। यह तो घटिया और पाशविक विचार लंबे समय तक लगातार सोचने का परिणाम होता है।

# इंसान ही ख़ुद को बनाता है; इंसान ही ख़ुद को मिटाता है। विचारों के कारखाने में वह ऐसे हथियार बनाता है, जो उसे नष्ट कर देते हैं। दूसरी ओर, वह ऐसे औजार भी बनाता है, जो उसके लिए ख़ुशी, शक्ति और शांति के दैवी महल बना सकते हैं। सही विचार चुनने और उन पर सही तरीक़े से काम करने पर मनुष्य उसी दैवी पूर्णता की ओर बढ़ता है, जिस तक पहुँचने के लिए उसे इस संसार में भेजा गया था। ग़लत विचार चुनने और उन पर गलत अमल करने से मनुष्य पशु के स्तर तक गिर जाता है। 
इन दोनों अतियों के बीच चरित्र के कई भेद भी होते हैं। लेकिन एक बात पूरी तरह स्पष्ट है: हर स्थिति और परिस्थिति में इंसान ही अपनी तकदीर बनाता है और अपने जीवन को अपने विचारों के साँचे में ढालता है।

^ आधुनिक युग में बहुत सी मनोवैज्ञानिक सच्चाइयाँ सामने आई हैं। लेकिन उनमें से कोई भी इतनी ज़्यादा प्रभावी और लाभकारी नहीं है या इतना ज़्यादा आत्मविश्वास बढ़ाने वाली नहीं है, जितनी यह सच्चाई है - कि इंसान अपने विचारों का स्वामी होता है, वह अपने चरित्र का साँचा ख़ुद गढ़ता है और इस तरह वह अपनी परिस्थितियों, परिवेश तथा तकदीर का निर्माता होता है। आपके जैसे विचार होंगे, वैसा ही आपका चरित्र होगा और जैसा आपका चरित्र होगा, वैसी ही आपकी परिस्थितियाँ होंगी। यानी अगर आप अपनी परिस्थितियों से संतुष्ट हैं, तो आपको अपने विचारों को बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है।

^  दूसरी तरफ़, अगर आप अपनी परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं हैं, तो इसका मतलब है कि आपको अपने विचारों को बदलने की ज़रूरत है, क्योंकि उन्हें बदलने के बाद ही आपको अपनी मनचाही परिस्थितियाँ मिल सकती हैं।

इंसान में शक्ति, बुद्धि और प्रेम का वास है।
वह अपने विचारों का स्वामी है। इसलिए हर स्थिति की कुंजी उसी के हाथ में है। उसके भीतर वह कायाकल्प करने वाली शक्ति है, जिसके जरिये वह जैसा चाहे वैसा बन सकता है। इंसान ख़ुद को अपने मनचाहे साँचे में ढाल सकता है। और यह काम वह एक पल में कर सकता है - जब वह अपने विचारों या मानसिकता को बदलने का निर्णय ले।

# इंसान हमेशा स्वामी होता है - सबसे कमजोर और हीन अवस्था में भी। लेकिन कमजोर और हीन अवस्था में वह मूर्ख स्वामी होता है, जो अपने ‘घर’ का खराब संचालन करता है और अपने ही हाथों घर में आग लगा लेता है। 
 
^ दूसरी तरफ़, जब इंसान अपनी स्थिति के बारे में सोच-विचार करता है और अस्तित्व के नियम यानी विचार के नियम पर मेहनत से चलता है, तो वह समझदार स्वामी होता है। यह समझदार स्वामी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके अपनी ऊर्जा को दिशा देता है और अपने विचारों को लाभकारी क्षेत्रों में लगाता है, जिससे उसे सुखद परिणाम मिलते हैं। इस स्थिति में मनुष्य चेतन स्वामी बन जाता है। लेकिन मनुष्य ऐसा तभी बन सकता है, जब वह अपने भीतर विचार के नियम खोज ले। यह खोज पूरी तरह से अमल, आत्म-विश्लेषण और अनुभव पर निर्भर करती है।

• सिर्फ खोजने और खुदाई करने से ही सोना और हीरे मिलते हैं । इंसान भी अपने अस्तित्व से जुड़ी हर सच्चाई खोज सकता है ; शर्त सिर्फ़ इतनी है कि उसे अपनी आत्मा की खान में गहराई तक खुदाई करनी होगी और इस काम में लगन से जुटे रहना होगा । इस तरह खुदाई करने के बाद उसे इस सच्चाई का पता चलेगा कि वह अपने चरित्र का निर्माता है , अपने जीवन का साँचा उसी ने बनाया है और वही अपनी तक़दीर लिख रहा है । इस तरह देखने पर उसके सामने बिना किसी शक के यह साबित हो जाएगा कि उसे अपने विचारों पर नजर रखनी चाहिए , उन्हें नियंत्रित करना चाहिए और बदलना चाहिए , क्योंकि उसके विचारों का उस पर , दूसरों पर और उसकी जिंदगी तथा परिस्थितियों पर कितना गहरा असर हो रहा है ।


• इंसान को यह जाँच - पड़ताल धैर्य से करनी चाहिए । उसे कारण और परिणाम के नियम के दृष्टिकोण से इस पर विचार करना होगा । अगर वह अपने विचारों को पहचान लेगा , नियंत्रित कर लेगा और बदल लेगा , तो उसके सामने यह साबित हो जाएगा कि वह सचमुच अपने चरित्र का निर्माता है , अपने जीवन का शिल्पी है और अपनी तकदीर का स्वामी है ।

तब उसे पता चल जाएगा कि उसके जीवन की हर घटना , चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो , आत्म - ज्ञान हासिल करने की साधन है । इसी से समझ , बुद्धि और शक्ति मिलती है । 
दैवी नियम भी इसी दिशा में संकेत करता है : ' जो खोजता है , वह पाता है ; जो द्वार खटखटाता है , उसके लिए द्वार खुल जाता है । ' धैर्य , अभ्यास और सतत संकल्प से ही मनुष्य ज्ञान के मंदिर में दाख़िल हो सकता है ।

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